लेखक के बारे में
मेरा परिवार मूल रूप से अमरावती जिले से है| मेरा जन्मस्थान अमरावती ही है| बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था तथा शुरू की शिक्षा से लेकर तो विज्ञान, इंजीनियरिंग की उपाधियॉं प्राप्ति तक सभी कुछ अमरावती की ही देन है| माध्यमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, मराठी ही था| जीवन की नींव रखने में वहाँ के ‘ श्री समर्थ हायस्कूल ‘ , जहाँ मेरी माध्यमिक शिक्षा पूरी हुई, का बड़ा योगदान है| हमारे गुरुजनों में वर्गशिक्षक स्व. लेले सर, विज्ञान शिक्षक मुळे सर तथा अन्यों का स्मृतिलोप होना असंभव है| स्कूल तो प्रतिष्ठित था ही| वे गुरुजन भी उस पीढ़ी के थे जब शिक्षा क्षेत्र को व्यावसायिकता का स्पर्श भी नहीं हुआ था| ज्ञानदान के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे|
जहांतक अर्थार्जन का प्रश्न है, अभियन्त्रिकी उपाधि लेने के बाद महाराष्ट्र राज्य विद्युत मंडल में सेवारत हुआ| शुरुआत खामगांव से हुई| तैतीस वर्षों की सेवा के उपरांत निवृत्त हुआ तथा नागपुर को स्थायी निवासस्थान बनाया|
वरिष्ठ संपादक सदस्य :
आंतरभारती मासिक (पु. साने गुरुजी व्दारा संस्थापित)
३१ प्रकाशित कृतियाँ:
१) आधुनिक भौतिकशास्त्र (पार्ट १ से ९)
२)खगोलिकी
३)नक्षलवाद, २३ लेखों की लेखमाला
श्री मिलिंद हैदराबाद में प्रकाशित
४) समाजवाद (facebook 2017)
५) देवताओं के पुरखे एवं देवताओं की मुम्मियाँ
६) अस्तित्व का स्वरूप
अनुवादित साहित्य (प्रकाशित)
१) "विकेट' कथासंग्रह (श्री.बापट): मिलिन्द प्रकाशन हैदराबाद, (मराठी-हिंदी)
२) Healthy Mind is the essence of life: Dr.Pracheta (हिंदी-इंग्रजी)
३) धुनी तरुणाईः संपादक श्री अमर हबीबः आन्तरभारती में क्रमशः संपूर्ण प्रकाशित
४) पिछले १० सालों से लेख तथा अनुवादित लेख 'आन्तरभारती' में प्रकाशित
५) गोंडी संस्कृति की वास्तवता
६) अश्म युगांतर
७) धुनी तरुणाई
1970 में प्रचेता से विवाह हुआ|
विवाह के पश्चात तथा कौटुंबिक उत्तरदायित्वों को संभालते हुए उन्होंने निम्न योग्यताएं अर्जित कीं :-
बी.एस.सी., बी.ए.एम्.एस्., एफ.आय.आय.एम. , पी.एच्.डी.(आयुर्वेद) |
वे आयुर्वेद के तीन ग्रंथों की लेखिका भी रही|(मृत्यु२०१६)
जहांतक मेरे पठन तथा लेखन का संबंध है, पिताजी राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अमरावती जिले के लगभग आजीवन जिला संगठक रहे| मॉं भी हिंदी शिक्षिका थी| पिताजी तथा मॉं को प्रगतिशील सार्वजनिक कार्योँ से गहरा लगाव था| पिताजी का अपना व्यक्तिगत, किताबों का बड़ा संग्रह था| उसी के कारण वाचन में रुचि पैदा हुई| साथ-साथ टिप्पणियाँ लेने की आदत पड़ी जो लेखन करने में रूपांतरित हो गयी| सुविद्य पत्नी का भी इन कामों के लिए प्रोत्साहन था ही| आज लगभग ६०० किताबों का मेरा अपना संग्रह है| इन गतिविधियों में विश्वभारती प्रकाशन नागपुर के स्व. खन्नाजी तथा आन्तरभारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष श्री सदाविजय जी आर्य, इनका बड़ा प्रोत्साहन रहा| मेरा, युवा अवस्था में युवा तथा छात्र संगठनों से भी संबंध रहा|
श्रीमती. नलिनी आनंदराव लढके
पुरस्कार प्राप्त
१) राष्ट्रपति अध्यापक पुरस्कार (१९७७)
२) सावित्रीबाई फुले पुरस्कार(महाराष्ट्र शासन १९८७)
३) दलित मित्र (महाराष्ट्र शासन)
४) लोकमत सखी मंच- जीवन गौरव पुरस्कार
श्री . आनंदराव लढके उर्फ लढके गुरुजी
पुरस्कार प्राप्त
१) दलित मित्र (महाराष्ट्र शासन)
२) ‘पद्मश्री अनंत गोपाल शेवड़े’ हिंदी सेवा पुरस्कार
(महाराष्ट्र शासन)