अस्तित्व के पार ?

अस्तित्व के पार ?

लेखक: श्री. ज्योतिराव लढके |

यह सृष्टि हमें दिखती है| हम उसे अनुभव करते हैं| फिर भी मनुष्य, पीढ़ियों से, उसके पार किन्हीं अलौकिक बातों को ढूंढने का प्रयास करता है| शुरू में तो यह अज्ञानवश था| लेकिन आज भी मनुष्य अंधविश्वासों से मुक्त नहीं हुआ है| वर्तमान जीवन को अनुभूत करने के स्थान पर जीवन के पूर्व का और जीवन के बाद का कुछ ढूंढने में अधिक रुचि रखता है| इस अनुपम सृष्टि को ही ईश्वर क्यों नहीं मानता, यह समझ से परे है|

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