आज कोई भी समाचार पत्र खोलने के बाद उसमें नक्सलवाद से संबंधित कोई न कोई समाचार आपको अवश्य मिलेगा। 1967 वर्ष में दार्जिलिंग जिले के सुदूर गांव नक्सबलबाड़ी में एक घटना होतीं है। उस गाँव के नाम से एक शब्द बनता है नक्सलवाद । बढ़ते-बढते यह एक विचारधारा का प्रतीक बन जाता है। इस नक्सलवाद की यात्रा को चालीस-पचास वर्ष हो गये हैं। इस देश की राज्यसत्ता कहतीं है कि वह इस नक्सलवाद को जड़-मूल से मिटाने के लिए प्रतिबद्ध है। नक्सलवादी संगठनों की शक्ति भारत सरकार तथा अन्य राज्य सरकारों की शक्ति के सामने नगण्य है। फिर भी नक्सलवाद जिन्दा है। इतना ही नहीं उसने तो भारत के कुछ हिस्सों में शासन की निंद हराम कर रखी है। क्यों?
दूसरी ओर बीसवीं सदी में हुई वामपंथी क्रांतियों को सत्ता तक पहुँचने में इतना अधिक समय नहीं लगा। तब भी नक्सलवाद का आधार भारतीय समाज में बहुत ही सीमित दायरे में है। हिंसा का दर्शन भारतीय समाज में व्यापक तौर पर मान्य नहीं हो पाया है। तो नक्सलवाद का भविष्य क्या है?
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